तेरी शख्सियत
बेरुखी पे किसी की न कर ऐतराज़ कभी
शख्सियत तेरी, किसी के ज़िक्र की मोहताज नही ।
तू वो हुंकार है जिसे गूंजना है परे आसमानों के
सिसकियों सी दब जाये, ऐसी तू आवाज़ नही ।
शख्सियत तेरी किसी के ज़िक्र की मोहताज नही।
कहीं भीड़ में हज़ारों की पाये खुद को तन्हा अगर
दिल में हो सैलाब दर्द का , न आये बाँटने कोई मगर
चाहे बहा देना आंसू की नदियाँ पर याद रहे फिर मुस्कुराना है
ग़म के बोझ में दबना नही , फ़क्र से सर उठाना है ।
कोई खुद को ही जो लाश मान ने, उसका फिर इलाज नही
सिसकियों सी दब जाये, ऐसी तू आवाज़ नही ।
शख्सियत तेरी , किसी के ज़िक्र की मोहताज नही।
धुन न सही पर लाना हर ख्याल में इक तराना है
बनके दिखा मिसाल कोई , भुलाया जाता हर अफ़साना है ।
क्या हुआ न क़द्रदान जो कोई, खुद के लिए ही गाता जा
सुर के इस सागर में तू भी सुर की नदियाँ मिलाता जा
न करे ध्वनि जो तार छेड़ के, तू ज़ंग लगा वो साज नही
जो सिसकियों सी दब जाये , ऐसी तू आवाज़ नही ।
शख्सियत तेरी किसी के ज़िक्र की मोहताज नही ।
कुछ सुनता जा कुछ कहता जा, लफ़्ज़ों की ढेरी तहता जा
हर लफ्ज़ हो मीठा , नही ज़रूरी ; है जो सच वो कहता जा ।
जहाँ समझे न कोई लफ्ज़ के मायने, ख़ामोशी ही वहां जवाब है
बेबाकी जो रमी है तुझमे, तो तू लाजवाब है ।
जो खुद के ज़मीर को लगे कुरेदने , ऐसा तू अल्फ़ाज़ नही
सिसकियों सी दब जाये , ऐसी तू आवाज़ नही ।
शख्सियत तेरी किसी के ज़िक्र की मोहताज नही ।
पस्त न होने दे हौंसले, ये भी पर से कम नहीँ
पहले कदम में गिरे भले ही , उसका भी फिर ग़म नही
चाँद भी होगा मुट्ठी में बस, तारों में पहचान रख
आसमाँ अब दूर नही बस जारी ये उड़ान रख ।
मंज़िल से पहले रुक जाए, ऐसी तेरी परवाज़ नही
जो सिसकिओं सी दब जाये , ऐसी तू आवाज़ नही ।
शख्सियत तेरी, किसी के ज़िक्र की मोहताज नही ।
ज़िन्दगी तेरी किसी की फ़िक्र की मोहताज नही ।