Tuesday 2 February 2016

Hindi Poetry : मदमस्त जहाँ





मोहब्बत की हवाओं में, मदमस्त जहाँ हो गया,
नाम इस आशिक का , गुमनाम कहाँ खो गया ।

मशहूर था किसी दिल के शहर में, वो क्यों बदनाम हो गया
इश्क तो हवाओं में था कमबख्त मुझे ही जुकाम हो गया ।

कहते थे कभी लोग सभी, किस्से मेरी कहानी के
मुख्य उस कहानी का किरदार कहाँ खो गया।

मोहब्बत की हवाओं में, मदमस्त जहाँ हो गया,
नाम इस आशिक का , गुमनाम कहाँ खो गया ।




रुकते गये कदम  मेरे , मंजिल से दूर मैं हो गया,
कछुआ ज़माना निकला आगे, अहं में खरगोश मैं सो गया ।

अनमोल मेरे लफ्जों का जाने, मोल कहाँ वो खो गया ;
फैला जो फिर शोर हर तरफ, सहसा चुप मैं हो गया ।

हर भाव ज़माना देख रहा था, बिन आंसुओं के रो गया;
भीतर ही भीतर आंसू हर अरमान दिल से धो गया।

मोहब्बत की हवाओं में, मदमस्त जहाँ हो गया,
नाम इस आशिक का , गुमनाम कहाँ खो गया ।




छूट गया घर बार, आसमां छत नई अब हो गया
 मौत हसीना से मिलना था , पर जीने का न मोह गया।

तिरछी हर नजर हो गयी, ज़रा लीक से हटकर जो गया;
कचहरी लगी जो रिवाजों की , साबित गुनाहगार मैं हो गया ।

जिस दिल के टूटे ख्वाब कांच से, पत्थर का वो हो गया;
ये शख्स तो जिंदा है मगर, वो 'कलाकार' कहाँ सो गया ।

मोहब्बत की हवाओं में, मदमस्त जहाँ हो गया,
नाम इस आशिक का , गुमनाम कहाँ खो गया ।


धन्यवाद ।