Wednesday 2 November 2016

Hindi poem: तमो गुण से सतो गुण की ओर

तमो गुण से सतो गुण की ओर


तम को उज्जवल कर दे जो , हर सोच में वो मशाल है
तेज़ हवा से डर कैसा , हर साँस तेरी तूफ़ान है।
जो समय कभी विकट लगे
काल भी निकट लगे
न डर , निडर हो कर्म कर
जो है तेरा वो धर्म कर।
दुखों से तू भ्रमित न हो
चिंताओं से ग्रसित न हो
कुछ पल मन को शमशान बना
चिंताओं की तू चिता जला
राख भी जो बचे अगर
बिना विलम्ब तू दे बहा।
जो बीती ,बदलना न तेरे हाथ में
क्यों फ़िक्र कल की है हर बात में
है आज तेरा, तू इसी को जी
जो करना है वो कर अभी ।
क्या हुआ जो कोई न साथ है
तेरी ताक़त खुद के हाथ हैं।
जो पाये अकेला खुद को कभी
कर याद के शिव तेरे साथ हैं
कोई कहे बुरा न विचलित हो
क्रोध को तुझे हराना है,
चुरा के गम में पल हंसी के
खुद को तुझे हंसाना है ।
न कर परवाह ज़माने की कुछ करके खुद को ही दिखाना है,
तमो रजो गुण से उठ कर सतो गुण में जाना है।
यही है शान्ति , यही स्वर्ग है , इसी हवा में समाना है
तमो रजो गुण से उठ कर , सतो गुण में जाना है ।
तमो रजो गुण से उठ कर , सतो गुण में जाना है ।

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