Tuesday 19 January 2016

Hindi poetry : कभी कभी मेरे दिल में



कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है
सोच के भंवर में इक बवाल आता है।
रग रग में है  समाया  जो ख़ुदा
वजूद पे उसी के सवाल आता है।


खौफ के अंधियारों में छुपा हुआ जहान है
क्या मिटट्टी तेरी ही नही ये, गर्भ तक जो लहूलुहान है;
क्या ऐसी बातों पे कभी न तेरा ध्यान जाता है ?
कभी कभी मेरे  दिल में ये ख्याल आता है।


समाज में रिवाज में क्यों  फंसी हुई ये जान है,
क्या बेटी तेरी ही नही वो लुटा रही जो मान है;
इस सोच से मन में इक अजब सा भूचाल आता है,
कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है।


तेरे नाम पे दुनिया लूट रहे क्या वो संत फ़कीर महान हैं,
पत्थर और सोने की मूरत क्या दोनों न एक समान हैं;
तेरे दर पे खड़ा होके ये सवाली  सवाल यही दोहराता है,
कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है।


ये दुनिया भी अब अपनी खो चुकी पहचान है
जिंदगी खिलती थी  जहाँ  शहर वो अब वीरान है;
तू सोचे जिसे महान है
जिसपे इतना अभिमान है
ज़रा निगाह गौर से डाल ख़ुदा
वो बन गयी 'शमशान' है ।

क्यों क़व्वाली मातम की  सूफ़ी दिल ये गाता है
मैं ही क्या हर कोई अब तो यही हाल सुनाता है,

'कभी कभी मेरे दिल में ये ख्याल आता है।'


धन्यवाद।






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