Monday 25 January 2016

Hindi poetry : वतन से इश्क


वतन से इश्क






आंधियों से हो भयभीत,
बिना दुखों के ही  ग़मगीन
क्यों डरते हो तूफानों से ,जरा एक फ़िक्र हटा कर तो देखो;
तुमसे हर तूफ़ान डरेगा, हिम्मत ज़रा जुटा कर तो देखो।

पस्त हो रहा होंसला
लगे हर इरादा खोंखला,
क्यों डरते हो ऊँचाइयों से , दिल से डर मिटा कर तो देखो;
ख़िदमत में आकाश झुकेगा , नज़र ज़रा उठा कर तो देखो।

हर तरफ परछाईयां है,
भीतर दिल के तनहाइयाँ है।
क्यों डूबे हो तन्हाईयों में , दुश्मन को दोस्त बना कर  तो देखो;
हर जात धर्म सब साथ चलेगा , ज़रा एक कदम बढ़ा कर तो देखो ।

हर सड़क बंद हर गली बंद
आये न कोई राह नज़र
क्यों जकड़ गये हो इस जाल में , सोया शेर जगा के तो देखो
 देने को रस्ता सागर सूखेगा , पाँव ज़रा भीगा कर तो देखो ।

फ़ैली नफरत हर ओर है
मारकाट का शोर है
संकुचित हुए हो इन जन्ज़ालो में , किसी से दिल मिला कर तो देखो;
हर तरफ प्यार का चमन मिलेगा, ज़रा एक फ़ूल खिला कर तो देखो ।

 मोहब्बत क्यों बदनाम है
सब आशिक क्यों गुमनाम हैं
हर तरफ प्यार की नदी बहेगी, दो बूँद ज़रा बहा कर तो देखो;

कहते हैं सब इश्क गुनाह है, ज़रा वतन से दिल लगा कर तो देखो ।



धन्यवाद ।
जय हिन्द ,
जय भारत ।








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